Sunday, May 28, 2017

एक बनो नेक बनो

       आजकल अपने देश मै चल रहे जातीय विवाद 
बड़रहे हे ,और ये देश हित के लिए बौहत हानिकारक है और किस भी मुल्क़ के लिए ये अछि बात नहीं है,
और इसका ताजा उदाहरण है आखाती देश जहाँ पे
धर्म के नाम पे ख़ून बहा दिया जा रहा है,
 इसमें सीरिया जैसे देश मै कही मासूम बच्चों की जान
गई है, ये देश पूरी तरहा बरबाद हुआ है मानवता नाम 
का कुछ मतलब ही नहीं रहा इसमें गलती किसकी 
  धर्म के नाम पर आतंग फ़ैलाने वालोंकी  या उन अतंगवादियो की मदत करने वाले राजकीय लोगों की
मजहब के नाम से हिंसा करने वाले सिर्फ पैसों की लिए ही ख़ून बहाते हे इसके लिए राजकारण जिमेदार हे
सत्ता के लिये गलत लोगो को मदत करते हे,
जिसमे अमेरिका चीन रशिया जैसे ताकतवर देश कुछ 
अतंगवादियो की मदत करते हैं,
ऊने हाथियार बेचते हे और वुसी हतियार से मासूम लोगो की जान जाति हे इस बारे में विचार करने की आवश्यकता है,
क्युकी इसे होने वाले विध्वंस गंभीर रूप धारण कर लिया है अपने देश मै  इस कठनाई से निपटने की ताकत है, लेकिन हमें एक बन के रहना है 
आज एक आम आदमी सुबह जागने के बाद सबसे पहले टॉयलेट जाता है, 
बाहर आ कर साबुन से हाथ धोता है,

दाँत ब्रश करता है,

नहाता है,

कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढता है,

नाश्ता करता है,

घर से काम के लिए निकल जाता है,

बाहर निकल कर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन में या अपनी सवारी से ऑफिस पहुँचता है,

वहाँ पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ चाय पीता है,
 शाम को वापिस घर के लिए निकलता है,

घर के रास्ते में 

बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए मिठाई वगैरह लेता है,

मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुँचता है,

अब आप बताइये कि उसे दिन भर में कहीं कोई "हिन्दू" या "मुसलमान" मिला ?

क्या उसने दिन भर में किसी "हिन्दू" या "मुसलमान" पर कोई अत्याचार किया ?

उसको जो दिन भर में मिले वो थे.. अख़बार वाले भैया,

दूध वाले भैया,

रिक्शा वाले भैया,

बस कंडक्टर,

ऑफिस के मित्र,

आंगतुक,

पान वाले भैया,

चाय वाले भैया,

टॉफी की दुकान वाले भैया,

मिठाई की दूकान वाले भैया..

जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो इनमें "हिन्दू" या "मुसलमान" कहाँ है ?

"क्या दिन भर में उसने किसी से पूछा कि भाई, तू "हिन्दू" है या "मुसलमान" ?

अगर तू "हिन्दू" या "मुसलमान" है तो मैं तेरी बस में सफ़र नहीं करूँगा,

तेरे हाथ की चाय नहीं पियूँगा,

तेरी दुकान से टॉफी नहीं खरीदूंगा,

क्या उसने साबुन, दूध, आटा, नमक, कपड़े, जूते, अखबार, टॉफी, मिठाई खरीदते समय किसी से ये सवाल किया था कि ये सब बनाने और उगाने वाले "हिन्दू" हैं या "मुसलमान" ?

"जब हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में मिलने वाले लोग "हिन्दू" या "मुसलमान" नहीं होते तो फिर क्या वजह है कि "चुनाव" आते ही हम "हिन्दू" या "मुसलमान" हो जाते हैं ?

समाज के तीन जहर

टीवी की बेमतलब की बहस

राजनेताओ के जहरीले बोल

और  कुछ कम्बख्त लोगो के सोशल मीडिया के भड़काऊ मैसेज 

इनसे दूर रहे तो  शायद बहुत हद तक समस्या तो हल हो ही जायेगी.
  एक बनो नेक बनो

Go your Empire

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